भगवती वैष्णो देवी आदिशक्ति का ही स्वरूप हैं। भगवती दुर्गा का अवतरण समय-समय पर होता है, वह अजन्मा होते हुए भी नित जगत कल्याण के लिए जन्म लेती है। वह असुरों के संहार व देवताओं व जीवों के कल्याण के लिए प्रकट होती है। दुर्गाशप्तशती में भगवती दुर्गा आदि शक्ति की उत्पत्ति को विस्तार से बताया गया है।
एक समय की बात है कि महाबली असुर रम्भ के पुत्र महिषासुर ने सृष्टि में अत्याचार मचाया हुआ था। देवता भी उसके बल के सामने हीन हो गए थ्ो। इंद्र व अन्य देवता भी महिषासुर के सम्मुख टिक नहीं पा रहे थ्ो। महिषासुर के सताए हुए देवता जब भगवान विष्णु की शरण में गए तो भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि महिषासुर का वध सिर्फ कोई नारी ही कर सकती है।
फिर सभी देवता भगवान विष्णु के साथ भोले शंकर के पास गए और तब देवताओं की स्तुति करने पर उनके तेज से एक नारी की उत्पत्ति हुई, जो वैष्णवी कहलायीं। इनमें ब्रह्मा के अंश से महासरस्वती, विष्णु के अंश से महालक्ष्मी और शिव के अंश से महाकाली कहलाईं।
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वैष्णों देवी की गुफा में तीनों पिडियां इन तीन देवी स्वरूपों का प्रतीक हैं। इन तीन स्वरूपों का समवेत नाम ही वैष्णवी है। ऊपर से भिन्न-भिन्न ने दिखाई देने पर भी इनमें कोई भेद नहीं है। इसी कारण माता वैष्णो देवी की गुफा में विराजमान है। यहां ऊपर से भले ही अलग-अलग दिखाई दे रहा हो लेकिन मंच के नीचे एक मूर्ति होने पर नारी की आकृति के सदृश्य प्रतीत होता है। इसका मतलब यह हुआ कि जैसे ब्रम्हा, विष्णु व शिव एक ही ब्रह्म के भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं।
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तीनों भिन्न भिन्न काम करते हैं। ठीक उसी प्रकार आदिशक्ति एक रूप होते हुए भी कार्य सिद्धि के लिए तीन नाम और स्वरूप धारण करती हैं। पराशक्ति की यें तीन पिडिया आध्यात्मिक रूप से इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और प्रयास शक्ति का प्रतीक है, क्योंकि संसार में इच्छा, ज्ञान और क्रिया के बिना कोई भी कार्य सम्भव नहीं है। भगवान विष्णु की तरह ही जगत कल्याण के लिए माता वैष्णवी का अवतरण हुआ है।
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