विष्णु स्तुति से मिलता है अतुल्य पुण्य, मिटते हैं संताप

0
2859

जगत के पालनहार भगवान विष्णु समय-समय पर अवतरित होकर धरती पर अधर्मियों का नाश कर धर्म की स्थापना करते हैं। सच्चे मन-वचन-कर्म से उनका ध्यान व अर्चन किया जाए तो वे शीघ्र फल प्रदान करते हैं। विष्णु स्तुति में उन्हीं भगवान विष्णु की महिमा का बखान है, जिसे पढ़ने-सुनने से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है, जो जीव मात्र को मोक्ष की प्राप्ति कराता है।

शांत स्वरूप वाले, सर्प यानी श्ोष शय्या पर शयन करने वाले, नाभी में कमल से युक्त, देवताओं के स्वामी, विश्व का आश्रय, आकाश के समान विस्तार वाले, मेघवर्ण वाले, सुशोभित अंगों वाले, लक्ष्मीपति, कमल के समान नेत्र वाले, योगियों के द्बारा समझने योग्य, संसार के भय को दूर करने वाले और संपूर्ण जगत के स्वामी भगवान विष्णु को मैं नमस्कार करता हूं।

Advertisment

मस्तक पटल पर कस्तूरी का तिलक लगाए हुए, वक्षस्थल में कौस्तुभ मणि को धारण किए हुए, नासाग्र में सुंदर मौक्तिक धारण किए हुए, करतल में वेणु और हाथ में कंगन धारण किए हुए, संपूर्ण शरीर में चंदन से सुशोभित, कंठ में मोतियों की माला धारण किए हुए, गोपियों से घिरे हुए, गोपालों में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण की जय हो।

विकसित कमल के समान कांति वाले, चंद्रमा के समान मुख वाले, मयूर पंख प्रिय, लक्ष्मी जी से चिन्हित, उदर पर कौस्तुभ मणि को धारण करने वाले, सुंदर पीत वस्त्र धारण करने वाले, गोपियों के नयन रूपी कमल से पूजित हैं, शरीर जिनका गो और गोपियों के समुदाय व्याप्त हैं। सुंदर रेणु को बजाने में तत्पर, श्रेष्ठ अंग भूषणों से युक्त गोविद का मैं ध्यान करता हूं।

जिनकी ब्रह्मा, वरुण, इंद्र, वायु दिव्य मंत्रों से स्तुति करते हैं। सामवेद अंगों सहित वेदों के द्बारा और उपनिषदों से जिनका गान करते हैं। जिनको योगी ध्यान अवस्थित होकर मन से देखते हैं जिनके अंत को देवता और राक्षस भी नहीं जानते, ऐसे उन परमात्मा के लिए नमस्कार है।
प्रथम पांडव व धृतराष्ट्र पुत्रों की उत्पत्ति, बाद में लाक्षागृह में ही आग लगाना, द्युतस्त्री हरण, वन में विचरण, मत्स्यालय को तोड़ना, साथ ही नाना लीलाओं को करना, गोहरण, युद्ध में भ्रमण करना, संध्या आदि क्रियाओं को बढ़ाना, तदन्तर भीष्म व दुर्योधन आदि का हनन करना, यही महाभारत है।

लक्ष्मी के पति, यज्ञों के पति, प्रजा के स्वामी, बुद्धि के स्वामी, विश्व के स्वामी, पृथ्वी के स्वामी, अंधक व वृष्णि वंश वालों के स्वामी और गति, ऐसे सज्जनों के स्वामी सदा मेरे ऊपर प्रसन्न रहें।
गो और ब्राह्मण देवता के हित के लिए व विश्व की भलाई के लिए कृष्ण और गोविद के लिए मेरा नमस्कार है।

आकाश से गिरा हुआ जल जैसे सागर में गिरता है, उसी प्रकार से सभी देवताओं का किया हुआ नमस्कार विष्णु को ही प्राप्त होता है, जिनकी कृपा से गूंगा बोलने लगता है और लंगड़ा पर्वत को लांग जाता है, ऐसे परमात्मा माधव को मैं नमस्कार करता हूं।
हे प्रभु तुम्हीं मेरी माता हो, तुम्ही पिता हो, तुम्हीं भाई हो, तुम्हीं मित्र हो, तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं दया हो यानी हे देव, तुम ही मेरे सब कुछ हो।
मैं पापी हूं, मैं पाप कर्म करने वाला हूं, मैं पाप का स्वरूप हूं और पाप से ही मेरी उत्पत्ति हुई है अत: हे, कमल के समान नेत्र वाले, मेरी रक्षा करो और मेरे पापों को दूर करो।
कृष्ण के लिए, वासुदेव के लिए, देवकी के नंद के लिए, नंद गोप कुमार के लिए और गोविद के लिए मेरा बारंबार नमस्कार है।
एक बार भी कृष्ण को किया हुआ प्रणाम दशाश्वमेघ यज्ञ करने के समान होता है। दशाश्वमेघ यज्ञ करने वाला तो मर-मर कर पुन: जन्म लेता है लेकिन कृष्ण को प्रणाम करने वाला पुन: जन्म नहीं लेता यानी मोक्ष को ही प्राप्त करता है।
इति विष्णु स्तुति सम्पूर्णम्

सनातन धर्म, जिसका न कोई आदि है और न ही अंत है, ऐसे मे वैदिक ज्ञान के अतुल्य भंडार को जन-जन पहुंचाने के लिए धन बल व जन बल की आवश्यकता होती है, चूंकि हम किसी प्रकार के कॉरपोरेट व सरकार के दबाव या सहयोग से मुक्त हैं, ऐसे में आवश्यक है कि आप सब के छोटे-छोटे सहयोग के जरिये हम इस साहसी व पुनीत कार्य को मूर्त रूप दे सकें। सनातन जन डॉट कॉम में आर्थिक सहयोग करके सनातन धर्म के प्रसार में सहयोग करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here