श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी यानी काशी नगरी में प्रतिष्ठित है। भगवान शिव को यह नगरी अति प्रिय है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस पुरी का लोप प्रलयकाल में भी नहीं होता है। भगवान भोलेनाथ इसे प्रलयकाल में अपने त्रिशूल में धारण कर लेते हैं। यह अविमुक्त क्ष्ोत्र कहलाता है। यहां जो प्राण त्यागता है, वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर मुक्ति को प्राप्त करता है।
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मान्यता है कि काशी में मरने वालों के कानों में भगवान शंकर तारक मंत्र देते हैं। काशी में भगवान शंकर विश्वेश्वर या विश्वनाथ के रूप में अधिष्ठित रहकर प्राणियों को भोग और मोक्ष प्रदान करते हैं। विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा, अर्चा, दर्शन और नामस्मरण से सभी कामनाएं सिद्ध होती हैं और अंत में परमपुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति होती है। काशी में उत्तर की ओर ऊॅँ कार-खंड, दक्षिण में केदार- खंड और मध्य में विश्वेश्वर खंड है। इसी विश्वेश्वर-खंड के अंतर्गत बाबा विश्वनाथ जी का प्रसिद्ध मंदिर है।
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श्री काशी विश्वनाथ का मूल ज्योतिर्लिंग उपलब्ध नहीं है। प्राचीन मंदिर को मूर्तिभंजक मुगल बादशाह औरंगजेब ने नष्ट भ्रष्ट करके उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण कराया था। भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति ज्ञानवापी में पड़ी हुई बतायी जाती है। नए विश्वनाथ मंदिर का निर्माण इससे थोड़ी दूर शिवभक्त इंदौर की महारानी अहल्याबाई ने कराया था। पंजाब के महाराज रणजीत सिंह ने इस मंदिर के गुम्बद पर सोने की पत्तरे चढ़वाई।
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