वृंदावन क्यों है भगवान श्री कृष्ण को परमप्रिय

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वृंदावन नगर भगवान श्री कृष्ण को अत्यन्त प्रिय है। यहां पर भगवान श्री कृष्ण ने विविध लीलाएं की थीं। उन्होंने श्री राधा व गोपियों के साथ रास लीलाएं भी की थी। आज इस पावन नगरी में भगवान श्री कृष्ण में बहुत से प्राचीन मंदिर हैं। प्रमाण हैं, जो भगवान श्री कृष्ण के यहां वास करने की अनुभूतियां कराते हैं।

एक समय की बात है कि देवर्षि नारद जी भूलोक के भ्रमण पर निकले। वे हरि का सुमिरन कर जहां-तहां भ्रमण कर रहे थे। अपने अराध्य के ध्यान में मग्न महर्षि नारद जी विचरण करते हुए अपनी वीणा की तान पर हरि का गुणगान कर रहे थे। जब वह तीर्थराज प्रयाग पहुंचे तो तीर्थराज प्रयाग ने उनका सत्कार किया। इस दौरान उन्होंने नारद जी को अपने तीर्थराज होने की कथा का विस्तार से वर्णन किया।

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इस पर महर्षि नारद जी ने कहा कि भगवान ने आपको तीर्थराज के पद पर तो अभिषिक्त तो किया है, लेकिन मुझे इसे लेकर संशय है। क्या वृंदावन भी अन्य तीर्थो के तरह से आपको भेट देने के लिए उपस्थित होते हैं। इस तीर्थराज प्रयागराज ने उत्तर दिया कि नहीं ऐसा तो नहीं है। तब महर्षि ने कहा कि फिर आप तीर्थराज कैसे हैं। यह बात तीर्थराज को चुभ गई। इस पर उन्होंने गंभीरता से विचार किया और भगवान विष्णु के पास पहुंचे।

तीर्थराज प्रयागराज को आते देखकर भगवान ने यथोचित सम्मान दिया और उनके आने का प्रायोजन पूछा। तब तीर्थराज ने विनम्रता से भगवान विष्णु से कहा कि हे प्रभु, आपने मुझे तीर्थराज के पद पर अभिषिक्त किया है, लेकिन वृंदावन तीर्थ कभी मुझे भेंट देने के लिए नहीं आते हैं। फिर मैं तीर्थराज कैसे हुआ? अगर वृंदावन जैसा छोटा सा तीर्थ मेरी आधीनता स्वीकार न करे तो मेरा तीर्थराज होना सर्वथा अनुचित है।

प्रयागराज की बात सुनकर भगवान मौन हो गए। उनके नेत्रों से आंसु छलक आए। उन्हें व्रज की याद आ गई। माता यशोदा याद आ गईं। उनका प्रेम याद आ गया। नंदबाबा का स्नेह याद आ गया। सखाओं के साथ गोचारण याद आ गया। अपनी प्रियतमा राधारानी व अन्य गोपियों का स्मरण ताजा हो उठा। रास लीलाएं हृदय में स्फुरित होने लगीं। उनका हृदय प्रेम के भाव से द्रवित हो गया।

थोड़ी देर विचार मग्न रहने के बाद भगवान बोले कि तीर्थराज मैंने तुम्हें ठीक ही तीर्थों का राजा बनाया है, लेकिन राजा अपने घर का नहीं बनाया है। श्रीवृंदावन मेरा घर है। मेरी प्राण प्रिय राधा जी की परम विहार स्थली भी है। वहां की अधिपति व ईश्वरी तो वे ही हैं। वे ही वृंदावनेश्वरी हैं। मै भी सदा ही वहां निवास करता हूं, इसलिए तुम तीर्थराज ही हो, इसमें कोई संदेह नहीं है। वृंदावन मात्र एक तीर्थ नहीं है, तुम भी किसी प्रकार वृंदावन की सेवा करने के लिए आराधना कर सकते हो। उल्लेखनीय है कि देशभर से आज श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने के लिए यहाँ आते हैं। धार्मिक दृष्टि से इस पावन नगरी का अपना ही महत्व है, जो इस नगरी में दर्शन-पूजन करता है। राधे-कृष्ण को नमन करता है, उसे अतुल्य सुख व आनंद की प्राप्ति होती है। उसके कष्टों को राधारमण हरते हैं। उसे दिव्यता की अनुभूति कराते हैं।

बोलो- राधे-राधे, जय श्री कृष्ण

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