वाह रे बुद्धू नेता

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एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक नेता था जिसे लोग ‘बुद्धू नेता’ कहते थे। उसका असली नाम रमेश था, लेकिन गाँव के लोग उसे उसकी अजीबो-गरीब हरकतों की वजह से यह नाम दे चुके थे।

रमेश बहुत ही सरल और ईमानदार व्यक्ति था, लेकिन उसे राजनीति की पेचीदगियों का कोई ज्ञान नहीं था। जब भी वह किसी सभा में बोलता, तो अजीब-अजीब बातें करता जिससे लोग हंस पड़ते। फिर भी, उसकी ईमानदारी और सरलता के कारण लोग उसे पसंद करते थे।

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एक दिन गाँव में बाढ़ आ गई और हर कोई परेशान था। गाँव के लोग घबराए हुए थे कि अब क्या होगा। तभी रमेश ने एक बैठक बुलाई और कहा, “हम सब मिलकर इस समस्या का हल निकालेंगे।”

गाँव के समझदार लोग हंस पड़े और बोले, “वाह रे बुद्धू नेता, तुम क्या कर सकते हो?” लेकिन रमेश ने हार नहीं मानी। उसने गाँव के सभी लोगों से एकजुट होकर काम करने की अपील की। उसने कहा, “हमारे पास जो भी संसाधन हैं, उन्हें मिलकर इस्तेमाल करेंगे और गाँव को बचाएँगे।”

रमेश ने लोगों को उनके घरों से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया। उसने खाने-पीने की व्यवस्था की और गाँव के लोगों के साथ मिलकर बाढ़ के पानी को बाहर निकालने के उपाय किए। उसकी कड़ी मेहनत और नेतृत्व की वजह से गाँव को बाढ़ से बचा लिया गया।

जब बाढ़ का खतरा टल गया, तो गाँव के लोग रमेश की तारीफ करने लगे। उन्होंने समझा कि रमेश की सरलता और ईमानदारी में भी एक बड़ी ताकत छिपी है। वे बोले, “वाह रे बुद्धू नेता, तुमने हम सबको बचा लिया।”

उस दिन से रमेश को लोग ‘बुद्धू नेता’ नहीं, बल्कि ‘बुद्धिमान नेता’ कहकर पुकारने लगे। उसकी कड़ी मेहनत, ईमानदारी और नेतृत्व ने सबका दिल जीत लिया और उसने साबित कर दिया कि सच्ची बुद्धिमत्ता सरलता और ईमानदारी में ही होती है।

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