शिव उपासना में भगवान् ब्रह्मा व विष्णु की उपासना निहित

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संसार में सर्वाधिक भक्त भगवान् शिव के ही हैं, क्योंकि असुर भी शिवजी की उपासना करते हैं। यहाँ तक कि भूत – प्रेतादि भी शिवजी के ही परिवार माने जाते हैं, अर्थात् शिवजी की उपासना में सभी का स्थान है। हो भी क्यों न ! भगवान् शिव कल्याणकारी जो ठहरे ! यह चराचर – स्थावर जङ्गम- जगत् जो भी देखने में आता है, वह सारा शिव का ही रूप है

अन्तस्तमो बहिःसत्त्वस्त्रिजगत्पालको हरिः। अन्तःसत्त्वस्तमोबाह्यस्त्रिजगल्लयकृद्धरः अन्तर्बहीरजश्चैव त्रिजगत्सृष्टिकृद्विधिः। एवं गुणास्त्रिदेवेषु गुणभिन्नः शिवः स्मृतः॥

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अर्थात् तीनों लोकों के पालन करने वाले भगवान् हरि भीतर से तमोगुणी हैं और बाहर से सतोगुणी हैं। तीनों लोकों का संहार करने वाले भगवान् हर भीतरसे सतोगुणी हैं, पर बाहर से तमोगुणी हैं। भगवान् ब्रह्मदेव जो तीनों लोकों को उत्पन्न करते हैं, भीतर  और बाहर उभयरूपमें रजोगुणी हैं और भगवान् परब्रह्म शिव तीनों गुणों से परे हैं।

इसका रहस्य यह है कि सुख का रूप सतोगुण है, दुःखका रूप तमोगुण और क्रिया का रूप रजोगुण है। भगवान् विष्णु सृष्टिका पालन करते हैं, इसलिये देखने में तो सृष्टि सुखरूप प्रतीत होती है, परन्तु भीतर से अर्थात् वास्तव में दुःख रूप होने से विष्णु भगवान्का कार्य बाहर से सतोगुणी होने पर भी तत्त्वतः तमोगुणी ही है। इसीलिये भगवान् विष्णु के वस्त्राभूषण सुन्दर और सात्त्विक होने पर भी स्वरूप श्यामवर्ण है। भगवान् शिव सृष्टि का संहार करते हैं।

वे देखने में तो दुःख रूप हैं, पर वास्तव में संसार को मिटाकर परमात्मा में एकीभाव कराना उनका सुखरूप है। इसीलिये भगवान् शिव का बाहरी शृङ्गार तमोगुणी होने पर भी स्वरूप सतोगुणी है और उनका शीघ्र प्रसन्न होना भी जिसके कारण वे आशुतोष कहलाते हैं, सतोगुणका ही स्वभाव है।

भगवान् ब्रह्मदेव सदा सृष्टि का निर्माण ही किया करते हैं, इसलिये वे रक्तवर्ण हैं ; क्योंकि क्रियात्मक स्वरूपको शास्त्रों ने रक्तवर्ण ही बतलाया है। अत : शिवजी की उपासना के अन्तर्गत भगवान् ब्रह्मा एवं विष्णुको उपासना स्वतः आ जाती है। त्रिदेवों में परस्पर कार्यभेद नहीं है जो भेद दीखता है वह केवल लीलामात्र है।

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