महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा का शिव व स्कन्द पुराण में विस्तार से वर्णन
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा अनंत है। ज्योतिर्लिंग की महिमा का बखान जितना किया जाए, वह कम ही होगा। अंनन्त और अविनाशी आदिपुरुष भगवान शिव शंकर यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में अवस्थित हैं। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का बखान पुराणों व अन्य धर्म शास्त्रों में किया गया है। पावन ज्योतिर्लिंग को लेकर कथा भी है, जिसके अनुसार पुरातनकाल में उज्जयिनी यानी अवन्तिकापुरी में राजा चंद्रसेन का राज था। वह भगवान शंकर के परम भक्त थे। एक दिन श्रीकर नाम का पांच वर्षीय गोप बालक अपनी मां के साथ वहां से जा रहा था। राजा चंद्रसेन उस समय शिव पूजन कर रहे थ्ो, यह देखकर श्रीकर विस्मित हो गया।
कौतुहलवश वह स्यवं भी उसी प्रकार शिव पूजन करने के लिए लालायित हो गया। पूजन सामग्री व साधन न जुटा पाने पर वह निराश हो गया और मार्ग से पत्थर का टुकड़ा उठा लिया। घर पहुंच कर वह पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर पुष्प, चंदन, जल आदि से श्रद्धा पूर्वक पूजन करने लगा। काफी समय तक जब पूजन करता रहा तो उसकी माता उसे भोजन कराने के लिए बुलाने के लिए आयी, लेकिन वह पूजा छोड़ कर भोजन करने के लिए जाने के लिए तैयार नहीं हुआ।
इस पर उसकी माता झल्ला गई और उसने पत्थर का टुकड़ा दुर फेंक दिया। इस पर श्रीकर जोर-जोर से रोने लगा। भगवान शंकर का नमन करते हुए विलाप करने लगा और वहीं बेहोश हो गया। श्रीकर की भक्ति देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हो गये और जब बालक होश आया तो उसने शिव कृपा से निर्मित एक बहुत ही भव्य व विशाल स्वर्ण र‘ों से बना मंदिर देखा। उसे इस मंदिर के भीतर एक बहुत ही प्रकाशपूर्ण, भास्वर, तेजस्वी ज्योतिर्लिंग नजर आया। तब श्रीकर के उत्साह की सीमा नहीं रही और वह आनंद से भाव विभोर होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगा। माता को जब घटना का पता लगा तो वह दौड़ी-दौड़ी वहां आयी और अपने पुत्र श्रीकर को अपने गले से लगा लिया। राजा चंद्र सेन तक जब यह समाचार पहुंचा तो वह भी वहां चले आए और बालक की सराहना कर भगवान के दर्शन व पूजन किया।
इस बीच उस पावन स्थल में हनुमान जी भी प्रकट हो गए और बोले- भगवान शंकर शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवताओं में प्रथम हैं। बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे यह फल प्रदान किया है, जो कि बड़े-बड़े ऋषि मुनियों भी कोटि-कोटि जन्मों के तप से प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इस गोप बालक की आठवीं पीढ़ी में धर्मात्मा नन्द गोप का जन्म होगा। द्बापरयुग में भगवान विष्णु कृष्ण के रूप में अवतार लेंगे और लीलाएं करेंगे। इतना कहकर श्रीराम भक्त व भगवान शंकर के अंशावतार हनुमान जी वहीं अंतर्धान हो गए। इस पावन स्थल पर पूजा करते हुए राजा चंद्र सेन और गोप श्रीकर ने देह का त्याग किया और भगवान शंकर के धाम को गए।
इस ज्योतिर्लिंग को लेकर अन्य कथा भी है, जिसके अनुसार एक समय की बात है कि अवन्तिकापुरी में एक वेदपाठी और तेजस्वी ब्राह्मण रहते थ्ो। एक दिन दूषण नाम का राक्षस उनकी तपस्या में विधÝ डालने के लिए पहुंचा। दूषण ब्रह्मा ही वर से बेहद शक्तिशाली हो गया था और उसने धरती पर त्राहिमाम मचा रखा था। ब्राह्मण को संकट में देखकर तब भगवान भोले शंकर वहां प्रकट हुए और उन्होंने असुर को हुंकार मात्र से वहीं भस्म कर दिया। चूंकि भगवान वहां हुंकार सहित प्रकट हुए, इसलिए उनका नाम महाकाल पड़ गया। यहीं वजह इस ज्योतिर्लिंग को महाकाल के नाम से जाना जाता है। शिव पुराण, स्कन्दपुराण और महाभारत में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का बखान विधिवत किया गया है। यह परम पवित्र ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्ज्ोन नगरी में स्थित है। शिप्रा नदी के तट पर स्थित ज्योतिर्लिंग का बहुत माहात्म है। इसे अवन्तिकापुरी भी कहते है, इसे परम पवित्र सप्तपुरियों में से एक माना जाता है।