ओ३म् ,-‘वैदिक साधन आश्रम तपोवन में 7 दिवसीय सामवेद पारायण यज्ञ आरम्भ’

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ओ३म्
‘वैदिक साधन आश्रम तपोवन में 7 दिवसीय सामवेद पारायण यज्ञ आरम्भ’
वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में आज प्रातः 7.00 बजे से सामवेद पारायण यज्ञ का शुभारम्भ हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी हैं। यज्ञ में अनेक आर्य विदुषियां एवं विद्वान भाग ले रहे हैं। यह यज्ञ सात दिवस चलेगा। सामवेद पारायण यज्ञ तीन यज्ञकुण्डों वा वेदियों में किया गया। देश के कुछ भागों से अनेक लोग इस यज्ञ में सम्मिलित हुए हैं। स्थानीय गुरुकुलों के छात्र व छात्रायें भी इस आयोजन में अपनी सुविधानुसार उपस्थित हो रहे हैं। यज्ञ में मन्त्र पाठ गुरुकुल पौंधा के दो ब्रह्मचारी श्री विनीत कुमार एवं श्री गौरव आर्य कर रहे हैं। वैदिक विद्वान श्री महावीर मुमुक्षु, मुरादाबाद, श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी तथा पं. सूरत राम शर्मा जी के सान्निध्य में यज्ञ एवं सत्संग का कार्यक्रम पूरे धार्मिक वातावरण में हो रहा है। कोरोना रोग के कारण उपस्थित कुछ कम है परन्तु इस आपतकाल में कार्यक्रम को आयोजित करना व दूर दूर से लोगों का आना लोगों में धर्मभाव का विश्वास कराता है। आयोजकों ने इस आयोजन को रचकर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है। ईश्वर सामवेद पारायण यज्ञ में भाग ले रहे सभी बन्धुओं को पूर्ण सुखी रखें।

आज प्रातः 7.00 बजे सामवेद पारायण यज्ञ आरम्भ हुआ। इस कार्यक्रम की ‘वैदिक साधन आश्रम तपोवन’ के फेसबुक पृष्ठ से लाइव प्रसारण की व्यवस्था भी की गई। बहुत से लोगों ने देश भर में इस कार्यक्रम को देखा। यज्ञ तीन वृहद यज्ञ कुण्डों में किया गया। प्रत्येक यज्ञ कुण्ड पर यजमान के रूप में छः सात लोग उपस्थित थे। अन्य अतिथियों को भी यज्ञ में आहुतियां देने का अवसर दिया गया। इस सामवेद पारायण यज्ञ के साथ गायत्री यज्ञ भी सम्पन्न किया जा रहा है। गायत्री मन्त्र से भी यजमानों व धर्मप्रेमी बन्धुओं ने आहुतियां दी। यज्ञ के सम्पन्न होने पर यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने ईश्वर से प्रार्थना की। हमने उनके कुछ ही शब्दों को नोट किया। उन्होने कहा हे परमदयालु देव! हम आपकी प्रेरणा से ही यज्ञ रूपी श्रेष्ठ कर्म को कर पाते हैं। हमारा यह यज्ञीय कार्य आपको समर्पित करते हैं। हे प्रभु! आपने हमारे लिये यह विशाल संसार बनाया है। इसके लिये हम आपका धन्यवाद करते हैं। सृष्टि में सूर्य, चन्द्र व पृथिवी एवं अन्यान्य रचनायें आपने हमारे लिये की है। हे ईश्वर! हम अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त हों। हमें अपने जीवन में ब्रह्मानन्द की प्राप्ति हो। हम आपको बार बार नमन तथा वन्दन करते हैं। हे परमात्मन्! आपने ही सृष्टि के आरम्भ में मनुष्य जाति के कल्याण के लिये वेदों का ज्ञान दिया था। समय बीतने के साथ हम आलस्य व प्रमाद के कारण वेद ज्ञान से दूर हो गये। स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने अपनी प्रार्थना में मनुष्य जाति के वेदों से दूर चले जाने के कुछ ऐतिहासिक कारणों की भी चर्चा की। ऋषि दयानन्द के जीवन की महत्ता की चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने वेद रक्षा व वेद प्रचार के अनेक प्रशंसनीय कार्य किये। मानच जाति का यह दुर्भाग्य रहा कि वह अल्पकाल में ही मृत्यु का ग्रास बन गये। स्वामी जी ने ईश्वर से प्रार्थना की कि वह ऋषि दयानन्द के समान महान आत्माओं को भारत भूमि में जन्म दंे। अपनी प्रार्थना में स्वामी जी ने देश में अशान्ति तथा वैदिक धर्म पर मण्डरा रहे खतरों का भी उल्लेख किया और उनसे वैदिक धर्मी आर्य हिन्दुओं की रक्षा की प्रार्थना की। स्वामी जी ने परमात्मा से प्रार्थना की कि वह कोरोना महामारी से देश की रक्षा करें। स्वामी जी ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कार्यों की प्रशंसा की और उनकी रक्षा व उन्हें दीर्घ जीवन तथा सफलतायें प्रदान करने की प्रार्थना भी की। स्वामी जी ने कहा कि मोदी जी पूर्णरुपेण सुरक्षित रहें और उनके विरोधी सफल न हों। स्वामी जी ने देश की प्राचीन धर्म संस्कृति वेद व प्राचीन वैभव की पुनः प्राप्ति के लिये भी प्रार्थना की। हमारी सेनायें देश की रक्षा करने तथा शत्रु देश पर विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करें। हमारा देश सभी क्षेत्रों में आगे बढ़े। सबके घरों मे सुख, शान्ति और समृद्धि हो। सब बलवान व सुखी हों। सर्वत्र शान्ति का वातावरण हो। स्वामी जी द्वारा ईश्वर से की गई इस प्रार्थना के बाद सामूहिक यज्ञ प्रार्थना हुई जिसे भजनोपदेशक श्री रमेश चन्द्र स्नेही जी ने संगीत से सुरों में गाकर प्रस्तुत की।

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यज्ञ के पूर्ण होने के बाद आश्रम के प्रांगण में ध्वजारोहण सम्पन्न किया गया। ध्वजारोहण स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने किया। आचार्य शैलेशमुनि सत्यार्थी, हरिद्वार ने कहा कि ओ३म् ध्वज साधारण ध्वज नहीं है। उन्होंने कहा कि जहां ओ३म् ध्वज लहराता है वह सम्पत्ति व स्थान समाज व देश का होता है। उसकी रक्षा व उन्नति समाज करता है। उन्होंने श्रोताओं को कहा कि वैदिक साधन आश्रम आप सबका है। श्री सत्यार्थी जी ने धर्मप्रेमी श्रोताओं को कहा कि वह दान आदि का सहयोग कर आश्रम की उन्नति में सहयोग करें। श्री सत्यार्थी जी ने कहा कि वैदिक साधन आश्रम हम सबके लिये एक लाइट हाउस है जिससे प्राप्त ज्ञान से हम अपने जीवन को सभी क्षेत्रों में उन्नत कर सकते हैं। ध्वजारोहण में स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, डा. अन्नपूर्णा जी, श्री महावीर मुमुक्षु, मुरादाबाद आदि प्रमुख लोग उपस्थित थे। इसके बाद द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की छात्राओं ने राष्ट्रीय प्रार्थना व ध्वज गीत को गाकर प्रस्तुत किया। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने भी आश्रम में पधारे सभी वेदभक्तों को सम्बोधित किया और ओ३म् नाम व ध्वज से प्रेरणा लेने को कहा। आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा ने इस अवसर पर आश्रम पधारे सभी ऋषिभक्तों का स्वागत एवं अभिनन्दन किया। सबको मास्क का प्रयोग करने की प्रेरणा की। सबको अपने अपने घरों पर ओ३म् ध्वज लगाने की सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि ओ३म् ध्वज से सभी लोगों को ज्ञात हो जाता है कि यह आर्यसमाजी का घर है। ध्वजारोहण के बाद कार्यक्रम आधे घंटे के लिये रोका गया। इस अवधि में सभी लोगों ने आश्रम की भोजनशाला में प्रातराश प्राप्त किया। आधा घण्टे बात भजन व प्रवचन का कार्यक्रम हुआ।

ध्वजारोहण के बाद के सत्र में प्रथम आर्य भजनीक श्री दीपचन्द आर्य जी का एक भजन हुआ जिसके बोल थे ‘मुझको तेरा प्यार चाहिये। मुझको दूर वहां तू ले चल, हो न जहां पर स्वार्थ, कपट व छल। बहता जहां हो प्रेम पावन जल, गुझको वह संसार चाहिये, मुझको परमेश्वर तेरा प्यार चाहिये।’ भजन बहुत प्रभावशाली रूप में गाया जिसे सभी श्रोताओं ने पसन्द किया। इसके बाद आर्य भजनोपदेशक श्री रमेश चन्द्र स्नेही, हरिद्वार ने एक भजन प्रस्तत किया जिसके बोल थे‘ओ३म् प्रभु तेरा नाम है, प्रभु तुम गुणों की खान हो’। इसके बाद की पंक्तियां थी ‘वेद पढ़ा जाये हवन किया जाये, ऐसे ही परिवार को ही स्वर्ग कहा जाये।’ भजनों के बाद द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल, देहरादून की छात्राओं एक वेदमन्त्र का उच्चारण कर उसका घनपाठ प्रस्तुत किया जो अत्यन्त ही प्रभावशाली था। गुरुकुल की कन्याओं ने एक भजन भी प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘तू ही आनन्द दाता है, तेरी रचना अति सुन्दर है। नहीं कोई पार पाता है, तू ही आनन्द दाता है।।’ कार्यक्रम का संचालन श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने बहुत कुशलता एवं प्रभावशाली रूप में किया।

द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की प्राचार्या डा. अन्नपूर्णा जी ने प्रवचन करते हुए कहा कि परम पिता परमात्मा ने ही इस संसार को बनाया है। परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य है। जीवात्मा को मनुष्य का जीवन मिलना अति दुर्लभ है। मनुष्य का विद्या एवं ज्ञान से युक्त होना बहुत ही दुर्लभ है। यदि मनुष्य में सृजन शक्ति भी है, तो इसका होना सबसे दुर्लभ होता है। डा. अन्नपूर्णा जी ने आगे कहा कि संसार में सर्वश्रेष्ठ शक्ति के रूप में परमात्मा विद्यमान है। परमात्मा को उन्होंने आध्यात्मिक अग्नि बताया है। विदुषी वक्ता ने कहा कि जो संसार को आगे ले चलाता है, वह विद्वान व आचार्य भी अग्नि कहलाते हैं। आचार्या अन्नपूर्णा जी ने कहा कि संन्यासी भी अग्नि होते हैं। परमात्मा ज्ञानस्वरूप अग्नि होती है। संन्यासियों के वस्त्र भी अग्नि वर्ण के होते हैं। आचार्या जी ने अनेक प्रकार की अग्नियों की चर्चा भी की। आचार्या जी ने कहा कि परमात्मा अपरिमित बलशाली है। काम, क्रोध, लोभ तथा मोह को उन्होंने मनुष्य के आन्तरिक शत्रु बताया। उन्होंने कहा कि इन आन्तरिक शत्रुओं को नष्ट करने की वेदों में प्रेरणा की गई है। आचार्या जी ने अपने वक्तव्य में अनेक महत्वपूर्ण बातें कही। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि कोरोना की बीमारी आधिभौतिक दुःख है। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि वह हमारी दुर्वासनाओं को दूर कर दे। परमात्मा हमारा जीवन ऐसा बना दें कि हम जीवन भर उसके प्रति समर्पित होकर जीवन व्यतीत करें। कार्यक्रम का संचालन कर रहे श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि परमात्मा दयालु एवं न्यायकारी है। वह हमें पाप कर्म करने से बचाये। हमारे सभी दुर्गुण दूर कर दे। इसके बाद शान्तिपाठ हुआ और इसी के साथ प्रथम सत्र समाप्त हो गया। टंकारा में फरवरी2020 में आयोजित ऋषि बोधोत्सव के बाद यह पहला कार्यक्रम था जहां अनेक विद्वानों व ऋषिभक्तों की उपस्थिति एवं वेदपारायण यज्ञ को देख व सुनकर हमें प्रसन्नता हुई। इस अवसर को देने के लिए ईश्वर का धन्यवाद है। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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