मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। दिल्ली के सीमा क्षेत्रों में कृषि बिल को लेकर चल रहा किसानों और सरकार के बीच चल रही तनातनी अभी भी जारी है। प्रधानमंत्री ने संसद में धरनारत किसानों को आंदोलनजीव बताकर उनकी मंशा पर कुठाराघात किया है।
इसे लेकर किसानों में नाराजगी है। किसान नेता भी पीएम के इस बयान से खासे नाराज हैं। किसान मंच के राष्ट्रीय सचिव अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि प्रधानमंत्री सत्ता और बहुमत के अहंकार में भाजपा किसानों की ताकत को कम करके आंक रही है। उसे किसानों का आंदोलन मस्ती लग रहा है, लेकिन यही मस्ती सत्ताधारी दल की हस्ती बदल देगी। मेरठ के किसान राकेश चौधरी कहते हैं कि किसान किसी शौक से दिल्ली की सीमा पर नहीं जमा है बल्कि उसको अपने भविष्य की चिंता है। वह अपने भविष्य को पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रखे जाने से रोकने के लिये आंदोलन कर रहा है, लेकिन सरकार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। बागपत के चौधरी दलपत बालियान को भी सरकार के रवैये से नाराजगी है। वह कहते हैं कि लोकतंत्र में लोक की बात सुनी जारी चाहिए, लेकिन सत्ता तंत्र लोक को ही आतंकवादी और ना जाने क्या क्या आरोप लगाकर बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। सीमा पर ठंड के बीच टेंट में रात गुजारने वाले कोई आतंकवादी नहीं हैं और ना ही पिकनिक मनाने वाले पर्यटक, यह किसान हैं जो अपनी खेतों को बचाने के लिये सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिये जुटे हुए हैं। अगर सरकार किसानों की मांग मान लेती तो समस्यायें आसानी से हल हो जातीं, लेकिन सरकार एक कदम भी आगे बढ़ने को तैयार नहीं है। वह जिद पालकर बैठी है कि कृषि एक्ट लागू करके ही रहेगी। उसका अहंकार उसे एक दिन ले डूबेगा।