क्या सत्तामोह में मुलायम परिवार नैतिकता और राजनीतिक मर्यादाओं को भी भूल गया है

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बुजुर्गों का कहना है कि सुख में भले ही न जाओ, लेकिन किसी के दुःख में जरूर जाना चाहिए। दुनिया में मानवता से बड़ा कोई रिश्ता और नैतिकता से ज़्यादा महत्वपूर्ण कोई जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन समाजवादी पार्टी के मुखिया “मुलायम परिवार” के लिए सत्ता प्राप्ति और राजगद्दी का मोह शायद मानवीय मूल्यों और नैतिक जिम्मेदारी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
यूं तो मुलायम परिवार प्रारम्भ से ही समाजवाद के स्थान पर “अवसरवाद” को अधिक महत्व देता आया है। परन्तु आज जिस प्रकार से मुलायम परिवार ने उत्तरप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्व. कल्याण सिंह के अंतिम संस्कार से दूरी बनाए रखी। उसने सत्तालोलुपता के लिए इस परिवार के “अवसरवाद” की समस्त सीमाएं लांघ दी हैं, ऐसा उदाहरण राजनीति में बिरले ही देखने को मिलते हैं।
इस घटना ने न केवल राजनीतिक शुचिता को आघात पहुंचाया है अपितु इससे समाजवादी पार्टी की “तुष्टिकरण की राजनीति” का घिनौना चेहरा भी सामने आया है। जो लोग श्री अखिलेश यादव को “बड़ा हिन्दू” बता रहे थे, इस घटना से उनके गालों पर भी करारा तमाचा लगा है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एक समय वह भी था जब माननीय मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु स्व. कल्याण सिंह से गलबहियां की थीं। आज श्रीरामभक्त स्व. कल्याण सिंह के अंतिम संस्कार से दूरी बनाकर श्री मुलायम परिवार ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि उनको श्रीराम और श्रीरामभक्तों से कितनी नफ़रत है।
एक विवादित ढांचे और ग़ुलामी के प्रतीक की “रक्षा” और अपने “वोटबैंक” को ख़ुश करने के लिए हजारों निर्दोष और निरीह श्रीरामभक्तों पर गोलियां चलवाने वाले श्री मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार से आप कोई और उम्मीद रख भी नहीं सकते।

🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

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उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।

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