मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। संजय गांधी पीजीआई के एक रेजिडेंट डॉक्टर ने अपनी व्यथा सीधे मुख्यमंत्री को लिखकर सिस्टम पर सवालिया निशान लगा दिया है।
संस्थान के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग से एमडी कर रहे जूनियर रेजिडेंट डॉ मनमोहन सिंह ने अंतिम थ्योरी की परीक्षा में अनुत्तीर्ण किए जाने पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन की गुहार लगायी है, साथ ही इसके लिए 15 मई से तीन दिन तक भूखे रहते हुए सत्याग्रह शुरू कर दिया है।
रेजीडेंट डॉक्टर का कहना है कि मुझे पूरा विश्वास है की थ्योरी में मेरा प्रदर्शन अच्छा रहा है।अपनी पूरी जानकारी के अनुसार पिछले 3 साल से मैं लगातार थ्योरी में बेहतर प्रदर्शन करता रहा हूं,जबकि मेरी अंतिम वर्ष में थ्योरी की अंतिम परीक्षा में मुझे अनुत्तीर्ण किया गया है। रेजिडेंट ने यह भी कहा है कि मुझे दुख इस बात का भी है कि मेरे अनुत्तीर्ण होने के बारे में मुझे आज ऐन वक्त पर उस समय यह बताया गया जब मैं अपना प्रैक्टिकल एग्जाम देने पहुंचा। रेजीडेंट डॉक्टर का कहना है कि अपनी उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन के लिए न्यायिक सहायता सहायता की गुहार लगाने के अलावा मेरे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।अपनी इस मांग को लेकर मैं आज से 3 दिन तक भूखे रहते हुए सत्याग्रह शुरू कर रहा हूं।
इस घटना के सामने आने के बाद संजय गांधी पीजीआई की रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन ने पीड़ित रेजिडेंट के समर्थन में निदेशक को पत्र सौंपा है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ आकाश माथुर व महासचिव डॉ अनिल गंगवार ने व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा है कि मेडिकल कॉलेजों में यूँ तो श्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ाकर आठ घंटे की ड्यूटी के बजाय रेजिडेंट डॉक्टर्स से दिन-रात काम कराना एक नियम सा बन गया है, किंतु एक ऐसे वक़्त में जब सारा देश कोरोना के संकट से जूझ रहा है, ऐसे में पीजीआई जैसे संस्थानों में, जहाँ पहले से ही देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी नीट परीक्षा के माध्यम से लिए जा रहे हैं, वहाँ कई विभागों द्वारा अकारण रेजिडेंट डॉक्टर्स को फेल किया जाना कहाँ तक उचित है?दोनों डॉक्टरों ने कहा है कि अक्सर रेजिडेंट डॉक्टर्स को पढ़ने का वक़्त नहीं दिया जाता, दिन-रात मरीज़ों की सेवा सुश्रुषा में लगे ये रेजिडेंट फिर भी किसी तरह व्यक्तिगत जीवन की कीमत पर किताबें पढ़ने के लिए वक़्त निकालते हैं और फिर ऊल जलूल सैद्धान्तिक प्रश्नों से लबरेज़ ऐसी परीक्षा पद्धति का हिस्सा बनते हैं। जिसका न तो मरीज़ों के उपचार पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ना है और ना ही एक डॉक्टर द्वारा जीवन भर मरीज़ों की देखरेख में वह उपयोगी सिद्ध होनी है। फिर भी यह रेजिडेंट पूर्ण निष्ठा के साथ परीक्षा देते हैं, फिर भी उन्हें अक्सर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी अकारण अनुतीर्ण करना किस तरह से न्यायपूर्ण माना जाए। ऐसे में यहाँ कुछ अन्य प्रश्न भी खड़े होते हैं।इस संदर्भ में जब दोका सामना ने प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार खन्ना से संपर्क की कोशिश किया तो फोन उठाने वाले ने खुद को उनका निजी सचिव बताते हुए कहा कि मंत्री जी अभी शाहजहांपुर में मीटिंग कर रहे हैं। आप विषय फिर से नोट करा दीजिये आपकी बात उन तक खबर करवा देंगे।
एसजीपीजीआई फेल डॉक्टर प्रकरण, उच्य स्तरीय ग्रीवांस कमेटी करेगी जांच-डॉ राजेन्द्र धीमान, निदेशक
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। राजधानी स्थित एसजीपीजीआई में एक डॉक्टर द्वारा अपने साथ हुए अन्याय के कारण फेल होने पर सत्याग्रह करने के प्रकरण में उच्य स्तरीय ग्रीवांस जांच कमेटी का गठन कर दिया गया है। यह जानकारी स्वयं संस्थान के निदेशक डॉ राजेन्द्र कुमार धीमान ने दोका का सामना को दिया। उन्होंने बताया कि डॉ मनमोहन सिंह ने जो आरोप लगाया है गलत है। वह फेल हो गये हैं तो सहन नहीं कर पा रहे हैं। मैं इस इंस्टीट्यूट के प्रथम बैच का विद्यार्थी रहा हूँ।यहां थियोरी में पास होने के बाद ही प्रयोगात्मक परीक्षा में बैठ सकते हैं। तीन वर्ष में इस परीक्षा को पास करना होता है। जिसमे चार पेपर होते हैं दो इंटरनल, दो एक्सटर्नल एग्जाम होते हैं।कोरोना की तबाही में बचते-बचाते आज ही इनके एक्जामनर आये, इनकी की कापी का रिजल्ट आया, ये पास नहीं थे तो इन्हें प्रैक्टिकल में नहीं शामिल होने दिया गया। मैं डॉ मनमोहन सिंह को ढूंढ़वा रहा हूँ, ये मिल नहीं रहे हैं। इनको तीन-चार बार मोबाइल किया, संदेश भेजा लेकिन यह कोई जवाब नहीं दिये। इनके विभागाध्यक्ष को इनके कमरे पर भेजा लेकिन यह नहीं मिल रहे हैं। ये न मिलें तो इनके अभिभाक ही मिल लें। हमारे विद्यार्थी हैं इनके साथ हमारा लगाव है, दुराव नहीं।