पूर्व काल में हिरण्याक्ष कुल में दुर्गम नामक दैत्य पैदा हुआ। वेद को नष्ट करने के उद्देश्य से हिमालय पर्वत पर जाकर पितामह ब्रह्माजी की कठिन तपस्या करने लगा।
उसके कठिन तबसे प्रसन्न होकर जगत् पिता ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्होंने दुर्गम से वर मांगने को कहा। तब दैत्य दुर्गम ने सावधान होकर कहा, हे पितामह आप मुझे वर देना चाहते हैं तो यह वर दे की मैं देवताओं को आसानी से परास्त कर सकूं और संपूर्ण वेद मुझे प्रदान करें।ब्रह्मा जी ने दुर्गम को वेद दिए और देवताओं को परास्त करने का वरदान देकर अपने स्थान को चले गए।दुर्गम के हाथों में वेद चले जाने से पृथ्वी पर रहने वाले ब्राह्मण व अन्य लोग संध्या वंदन, जप तप, नित्य होम और पूजा-पाठ भूल गए।
संपूर्ण सृष्टि में अनाचार व्याप्त हो गया। देवताओं को अभी का भाग मिलना बंद हो गया जिससे वह निरंतर कमजोर होने लगे। दैत्य दिन-ब-दिन शक्तिशाली होने लगे। दैत्य दुर्गम ने देवराज इंद्र से अमरावती छीन ली। हवन आदि ना होने से वर्षा होनी बंद हो गई। जिससे नदी, तालाब, पोखरे आदि सूख गए। वर्षों तक वर्षा ना होने के कारण जीव-जंतुओं प्यास से मरने लगे। भीषण अकाल से त्रस्त होकर ब्राह्मणों ने भगवती जगदंबा की शरण ली। उनकी विनती करते हुए कहने लगे की हमारी रक्षा करो,हे पालनहार माता, हम तुम्हारे बालक भूख प्यास से तड़प रहे हैं, हमारी रक्षा करो।
ऐसी स्थिति में हम आपके चरणों के सिवा और कुछ नहीं देख पा रहे हैं। ब्राह्मणों की पुकार सुनकर भगवती ने ब्राह्मणों को दर्शन दिए। उस समय उनके हाथों में धनुष बाण, कमल पुष्प, शाक और सुंदर फल शोभा वान हो रहे थे। तब भगवती के नेत्रों से करुणा का उदगार हुआ। उनके नेत्रों से जल धाराएं गिरने लगी। नेत्रों से निकली जलधारा से नौ दिन और नौ रातों तक लगातार वर्षा होती रही। जिससे सृष्टि के सभी प्राणी प्रसन्न हो गए। डॉग सभी ब्राह्मण भगवती की स्तुति करते हुए कहने लगे कि हे भगवती, हमारे कष्टों को दूर करने के लिए तुम्हारे सहस्त्र नेत्रों से जो जलधारा निकल रही हैं, इसलिए अब तुम शताक्षी के नाम से विराजने की कृपा करो।
दुर्गम नामक दैत्य ने पितामह ब्रह्मा से वर्ष रूप वेद मांग लिया है। वेद के लुप्त हो जाने से तीनों लोगों में हाहाकार मचा हुआ है। तुम दुर्गम दैत्य से वेद छीन लेने की कृपा करो। भगवती शताक्षी ने अनेक प्रकार के शाक और मधुर फल देवताओं और प्राणियों के लिए उपस्थित किए। जिसके कारण वे शाकंभरी नाम से विख्यात हुई। प्रांतिक देवी ने दुर्गम नाम के दैत्य का वध करने के लिए अपने विग्रह से अनेक शक्तियां प्रकट की और जाकर दुर्गम को ललकार ते हुए कहा कि हे दुष्ट, वर्ग पाकर तू अभिमानी हो गया है, तेरे मृत्यु का समय निकट आ गया है। यह कहकर भगवती ने दुर्गम पर वाण वर्षा आरंभ कर दी। थोड़ी देर में देवी ने दुर्गम के रथ और सारथी को धराशाई कर दिय।
देवी की शक्तियों ने दुर्गम की एक विशाल सेना को नष्ट कर दिया। तदुपरांत देवी के छोड़े हुए 2 तीर दुर्गम के नेत्रों में जा लगे और फिर पांच बाणों से उसकी छाती छेद डाली। जिससे वह मौके पर ही धराशाई हो गया। पल भर में उसकी मृत्यु हो गई।देवी भगवती ने दुर्गम से वेद छीन लिए तब देवताओं ने उन पर पुष्पों की वर्षा की।दुर्गम नाम के दैत्य को मारने वाली देवी भगवती दुर्गा नाम से विश्व में विख्यात हुई।
नेताजी की कई गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक किया,एक उच्च स्तरीय समिति का गठन