यूपी के जलशक्ति विभाग में लगा भ्रष्‍टाचार का आरोप,ज्‍यादा रेट वाली कंपनी को दिया सर्वे का काम!

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मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। उत्‍तर प्रदेश के जलशक्ति विभाग में भ्रष्‍टाचार का आरोप लगा है।

manoj shrivastav

बताते हैं कि विभागीय अधिकारियों ने केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन की गाइडलाइन के विपरीत जाकर बेसलाइन सर्वे टेंडर में खेल किया और मंत्री जी को भनक तक नहीं लग पायी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ यूपी से कंपनीराज खत्‍म कर विकेंद्रीकरण के जरिये जनता तक रोजगार पहुंचाने के प्रयास में हैं तो जलशक्ति विभाग कंपनीराज स्‍थापित कर रहा है। दरअसल, केंद्र सरकार की शत प्रतिशत घरों में नल से पानी आपूर्ति की महत्‍वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन के तहत उत्‍तर प्रदेश में भी ग्रामीण क्षेत्रों में जलापूर्ति का काम किया जा रहा है। मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से मात्र 18 फीसदी घरों में ही आपूर्ति का पानी पहुंच पा रहा है। 2024 तक इसे शत प्रतिशत तक पहुंचाना है। केंद्र सरकार ने यह फैसला इसलिये लिया, क्‍योंकि देश के तमाम राज्‍यों में लोग आर्सेनिक, फ्लोराइड, लेड मिश्रित दूषित जल पीकर कई प्रकार के रोगों से ग्रसित होते हैं, और असमय मौत के गाल में समा जाते हैं। समयबद्ध तरीके से संचालित इस योजना के क्रियान्‍वयन की जिम्‍मेदारी सरकार उत्‍तर प्रदेश जलशक्ति विभाग को दी। राज्‍य पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मिशन के नाम से संचालित इस योजना में प्राथमिक तौर पर उन घरों का बेसलाइन सर्वे कराया जाना था, जिन घरों में पाइपलाइन से आपूर्ति नहीं हो रही है। इस सर्वे के आधार पर ही आगे की कार्य योजना तैयार की जानी है। केंद्र द्वारा जारी गाइडलाइन में कार्यान्‍वयन सहायता एजेंसियों के तौर पर गैर सरकारी संगठनों, स्‍वयं सेवी संगठनों, महिला स्‍व सहायता समूहों, सीबीओ, न्‍यास, प्रतिष्‍ठानों को प्राथमिकता दिये जाने की बात कही गई थी, जिन्‍हें आईएसए यानी कार्यान्‍वयन सहायता एजेंसी कहा जाता। इस योजना की एक मंशा यह भी थी कि स्‍थानीय स्‍तर पर कुछ समूहों, व्‍यक्तियों को एक तय समय तक रोजगार तय हो सकेगा तथा काम में भी तेजी से हो सकेगा, लेकिन केंद्र सरकार की मंशा के विपरीत जलशक्ति विभाग ने कार्ययोजना के क्रियान्‍वयन की शुरुआत ही लिमिटेड कंपनियों को बेसलाइन सर्वे के लिये आमंत्रित करके किया। कार्ययोजना का विकेंद्रीकरण किये जाने की केंद्र की मंशा के विपरीत कुछ कंपनियों एवं खुद को लाभ पहुंचाने के लिये आईएसए की बजाय कंपनियों को इसमें शामिल करके इसे पूरी तरह केंद्रीकृत कर दिया गया। अगर इसके क्रियान्वयन को विकेंद्रीकृत किया जाता तो सैकड़ों समूहों और हजारों लोगों को कुछ समय के लिये रोजगार दिया जा सकता था। जब बेसलाइन सर्वे के लिये ई-टेंडर मंगाया गया, उसमें पूरी तरह से खेल किया गया। QCBS यानी क्‍वालिटी एंड कास्‍ट बेस्‍ड सर्विव के आधार पर टेंडर मांगा गया। टेंडर चयन के लिये विभाग ने 70 नंबर टेक्निकल तथा 30 अंक फाइनेंसिल आधार पर देना तय किया। बेस लाइन सर्वे को चार जोन में बांटा गया। जोन एक और दो के लिये तीन कंपनियों कार्वी डाटा मैनेजमेंट, मेधज तथा वैपकाप टेक्निकल आधार पर चयनित की गईं। जोन तीन एवं चार के लिये इन तीनों कंपनियों के साथ आरईसी ने भी भाग लिया था, जिसे इन दो जोनों के लिये चयनित किया गया। QCBS टेंडर के आधार पर फाइनेंशियल बिड खोलने से पहले टेक्निकल बिड में कंपनियों को 70 में कितने नंबर मिले यह बताया जाना चाहिए था, लेकिन विभागीय अधिकारियों ने टेक्निकल के नंबर कंपनियों को नहीं बताये ताकि फाइनेंशियल बिड़ में गड़बड़ी होने पर चहेती कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिये इसे ऊपर नीचे किया जा सके। इसमें भी आरोप लगा कि मेधज और आरईसी मिलकर टेंडर डाले हैं, इसीलिये आरईसी ने जोन एक और दो में टेंडर नहीं डाला, ताकि इसका लाभ मेधज को मिल सके। जब फाइनेंशिल बिड खोला गया तो जोन एक में सबसे कम दाम वैपकाप ने दिया था और सबसे ज्‍यादा दाम मेधज ने दिया था। जोन एक में वैपकाप 11.20 पैसे में, कार्वी डाटा मैनेजमेंट 11.55 तथा मेधज 23.10 पैसे में काम करने को तैयार थीं। जोन दो में वैपकास 11.25 पैसा, कार्वी डाटा मैनेजमेंट 11.38 तथा मेधज ने 22.3 पैसे में काम करने की बिड डाली थी। ऐस ही जोन तीन में कार्वी डाटा मैनेजमेंट ने 12.10पैसे, वैपकाप ने 12.45, आरईसी ने 14.56 तथा मेधज ने 20.30 का रेट दिया था। जोन चार में भी कार्वी ने 11.69, वैपकाप ने 12.55, आरईसी ने 13.86 तथा मेधज ने 20.20 का रेट डाला था। नियमानुसार सबसे कम रेड डालने वाली कंपनियों को काम जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विभागीय अधिकारियों ने ना जाने कौन सा अक्षांश और देशांतर का गणित लगाया कि जोन एक और दो में सबसे मंहगा यानी यानी सबसे कम वाली कंपनी से दूना रेट देने के बाद भी मेधज का चयन कर लिया। इसके बाद जोन तीन और चार में भी तीसरे नंबर पर महंगा रेट डालने वाली कंपनी आरईसी को चयनियत कर लिया गया। मेधज को जोन एक में 23.10 तथा जोन दो में 22.30 के दर से काम मिला वहीं आरईसी को जोन तीन एवं चार में क्रमश: 14.56 एवं 13.86 की दर से काम दिया गया। अब कम दाम वाली कंपनियों को काम क्‍यों नहीं मिला, यह तो जांच का विषय है, लेकिन अधिकारियों के इस फैसले से करोड़ों रुपये का चूना सरकार को लगा। विभागीय सूत्रों का कहना है कि जोन एक के लिये 13 करोड़, जोन दो के लिये 12 करोड़, जोन तीन के लिये 7 करोड़ तथा जोन चार के लिये 6 करोड़ यानी 38 कुल करोड़ का बजट रखा गया था, लेकिन महंगे दाम वाली कंपनियों को सर्वे का काम देने से यह खर्च 64 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। जबकि इस तरह के टेंडर में टेंडर खर्च बीस फीसदी ज्‍यादा होने पर ज्‍यादातर विभाग री-टेंडर कराते हैं। लेकिन इसमें साठ फीसदी ज्‍यादा दाम बढ़ जाने के बावजूद विभाग ने री-टेंडर कराने की जहमत नहीं कराया। ऐसा कौन सी कारण रहा कि विभाग के अधिकारी सरकारी धन को नुकसान पहुंचाते हुए महंगी दर वाली कंपनियों को टेंडर देने को मजबूर हो गये? हालांकि राज्‍य पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मिशन के निदेशक सुरेंद्र राम ऐसे आरोपों को सही नहीं मानते हैं।दिलचस्‍प बात यह है कि आरईसी ने जिस टेंडर को सरकार से 14.56 एवं 13.86 की दर लिया, उसी सर्वे के लिये उसने दूसरी कंपनियों से 9.5 से 11 रुपये के बीच सब टेंडर का रेट दिया। यह काम इस दर पर भी हो सकता था, जिस दर पर आरईसी ने सब टेंडर निकाला, लेकिन जलशक्ति विभाग के अधिकारियों ने पता नहीं कौन सा गणित निकाला कि मेधज को लगभग दुगुने दर पर काम दिया, वहीं आरईसी को भी कम रेट डालने वाली दो कंपनियों पर वरीयता देकर चुना गया? इस काम को 60 दिन के तय समय में किया जाना था, सुरेंद्र राम के अनुसार आरईसी ने अभी दहाई प्रतिशत में भी काम नहीं किया है, जबकि 40 दिन बीतने वाले हैं। उनके अनुसार मेधज ने 90% से अधिक काम कर लिया है।जलशक्ति विभाग में जिस तरीके से भ्रष्‍टाचार करते हुए जनता का पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, वह जांच का विषय है। इस बेसलाइन सर्वे में हुए गड़बड़ी के आरोपों पर पक्ष लेने के लिये जब विभागीय मंत्री डा. महेंद्र सिंह को जब दोका सामना ने फोन किया तो उन्होंने बताया कि ऐसा कोई भी गड़बड़ी का विषय उनके संज्ञान में नहीं है। अभी हम विधानसभा के उपचुनाव में हैं इस संदर्भ में अवश्य जानकारी करूंगा। जबकि प्रमुख सचिव अनुराग श्रीवास्‍तव का तो फोन ही नहीं उठा। राज्‍य पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मिशन के निदेशक आईएएस सुरेंद्र राम से पूछा गया तो उन्‍होंने कहा कि सारे आरोप बेबुनियाद हैं। सारा कुछ नियम के अनुसार किया गया है। कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। उन्‍होंने यह भी बताया कि मेधज ने नब्‍बे फीसदी काम कर लिया है, आरईसी जरूर अभी तक दस फीसदी से कम काम किया है। पर जहां तक किसी भ्रष्‍टाचार या गड़बड़ी का सवाल है आरोप गलत है। अगर कोई शिकायत करता है तो उसकी सुनवाई की जायेगी।

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