वट सावित्री व्रत विशेष

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सनातन पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है. इस तिथि को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु एवं अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं. इस तिथि को महिलाएं व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा एवं परिक्रमा करती है. इस बार अमावस्या तिथि आज यानी 9 जून दिन बुधवार को दोपहर 01:12 बजे से शुरू होगी. तथा अमावस्या का समापन 10 जून को शाम 03:20 बजे होगा. ऐसे में सुहागिन महिलाएं चाहें तो वे 9 जून को वट सावित्री का व्रत रखकर अगले दिन यानी 10 जून को वट वृक्ष की पूजा और परिक्रमा कर सकती हैं. परिक्रमा के बाद महिलायें व्रत का पारण करेंगी.

वहीं कुछ महिलायें वट सावित्री वृक्ष की पूजा और व्रत दोनों 10 जून को ही रखेंगी और अगले दिन यानी 11 जून को व्रत का पारण करेंगी. सनातन पंचांग के अनुसार, उदया तिथि को व्रत रखना उत्तम एवं शुभ फलदायी होता है. इस लिए सुहागिन महिलाओं को चाहिए कि वे वट सावित्री व्रत 10 जून को रखकर वट वृक्ष की पूजा और परिक्रमा करें. उसके बाद अगले दिन व्रत का पारण करें.
वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त:-
व्रत तिथि : 10 जून 2021 दिन गुरुवार

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अमावस्या शुरू : 9 जून 2021 को दोपहर 01:12 बजे

अमावस्या समाप्त : 10 जून 2021 को शाम 03:20 बजे

व्रत पारण : 11 जून 2021 दिन शुक्रवार

ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या में शनैश्चर भगवान की जयंती मई गुरूवार को मनाई जाएगी ।इस उपलक्ष्य में जगह जगह शनि भगवान की विशेष पूजा अर्चना की जाएगी।

वट सावित्री व्रत के दिन ही सूर्य ग्रहण भी लगने जा रहा है. सूर्य ग्रहण के दौरान कोई भी धार्मिक कार्य करना अशुभ होता है. चूंकि सूर्य ग्रहण 10 जून की दोपहर 01:42 बजे से शुरू होगा और शाम 06: 41 बजे समाप्त होगा. ऐसे में सुहागिन महिलाओं को चाहिए कि वट वृक्ष का पूजन एवं परिक्रमा प्रातः काल ही कर लें.पंडित देवेन्द्र नाथ तिवारी जी के अनुसार हालांकि यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा. ऐसे में इस ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होगा।

वट सावित्री व्रत पूजन विधि-:
इस दिन बांस की दो टोकरी लें। उनमें सप्तधान्य (गेहूं, जौ, चावल, तिल, कांगुनी, सॉवा, चना) भर लें। उन दोनों मे से एक पर ब्रह्मा और सावित्री तथा दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की प्रतिमा स्थापित करें। यदि उनकी प्रतिमाएं न हो तो मिट्टी या कुश में ही परिकल्पित कर स्थापित करें।

वटवृक्ष के नीचे बैठकर ब्रह्मा-सावित्री का, उसके बाद सत्यवान एवं सावित्री का पूजन कर लें। सावित्री के पूजन में सौभाग्य वस्तुएं (काजल, मेहंदी, सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, वस्त्र, आभूषण, दर्पण इत्यादि) चढ़ाएं। अब माता सावित्री को अर्घ्य दें। इसके बाद वटवृक्ष का पूजन करें।

वट वृक्ष के पूजन के बाद उसकी जड़ों में प्रार्थना के साथ जल अर्पण करें। वटवृक्ष की परिक्रमा करते हुए उसके तने पर 108 बार कच्चा सूत लपेटें। यदि इतना न कर सकें, तो 28 बार अवश्य परिपालन करें। पूजा के अंत में वट सावित्री व्रत की कथा सुनें।

ज्योतिर्विद पं.देवेन्द्र नाथ तिवारी

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