किसी भी नये विषय में लगने से मन एक बार घबराता है, रुकता भी है, ऊबता भी है और कभी प्रबल रूप से उसे अस्वीकार भी कर देता है, लेकिन इससे घबराओ मत । गाय पहले – पहल नई जगह, नये खूटे पर बँधने से इनकार करती है,
चाहे वह नयी जगह उसके लिये पहली की अपेक्षा कितनी ही अधिक सुखप्रद क्यों न हो, जरा – सी रस्सी ढीली होते ही या अवसर पाते ही भागकर पुरानी जगह पहुँच जाती है । इसी प्रकार मन भी नये विचार में लगना नहीं चाहता । और इसी कारण विषय चिन्तन में अभ्यस्त मन भगवच्चिन्तन में लगने से घबराता, रुकता, उकताता और इनकार करता है। लेकिन यदि निराश न होकर उसे निरन्तर लगाते जाओगे तो वह विषय – चिन्तन को छोड़ कर भगवच्चिन्तन में वैसे ही लग जायगा , जैसे गौ कुछ दिनों बाद पुरानी जगह को भूलकर नयी जगह में ही रम जाती है । जीवन का विषय चिंतन का अभ्यास काफी पुराना है, उसे छुड़ा कर भगवच्चिन्तन में लगाने में मानव जीवन का आधे से अधिक काल भी लग जाये तो वह भी कम जानिए, बशर्ते विषय चिंतन से मुक्त हो जाएँ और भगवच्चिन्तन में रमें ।