हिंदुओं को सत्ता क्यों नहीं हज़म होती, कभी सोचा है

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हिंदुओं को सत्ता क्यों नहीं हज़म होती, कभी सोचा है 

—मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

अभी कुछ समय पहले चांदपुर शहर में हमारे एक प्रसिद्ध उद्योगपति मित्र (R) के यहां एक सज्जन (A) बैठे थे जो एक बड़े नामी उद्योगपति परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। बातचीत के दौरान (A) ने कहा कि भाजपा सरकार ने व्यापारियों की मुश्किलें और अधिक बढ़ा दी हैं। इसपर (R) ने (A) को समझाया लेकिन (A) मानने को राजी नहीं हुए। हद तो तब हो गई जब वह यहां तक कहने लगे कि भले ही हमें इस्लाम कबूल करना पड़े लेकिन हम सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं काटेंगे। उनका मानना था कि धर्म भले ही गर्त में चला जाए लेकिन हमारा व्यापार फलता-फूलता रहना चाहिए।
ऐसे ही अभी हाल ही में एक पंडित जी महाराज जो कि हमारे परम मित्रों में से हैं और पेशे से ज्योतिष हैं, कह रहे थे कि “शास्त्री जी, किसी की भी सरकार आये, हमें तो अपने खाने-कमाने से मतलब है। योगी-मोदी कौन सा हमें रोटी-रोज़ी दे रहे हैं, और अखिलेश यादव या मायावती कौन सी हमारी रोटी छीन लेंगे।”
मेरठ के एक हमारे मित्र कह रहे थे कि – “यार शास्त्री जी, विकास दुबे जैसी महान आत्माओं का एनकाउंटर कराकर योगी सरकार ने ब्राह्मणों की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी, अब ब्राह्मण समाज तरक़्क़ी कैसे करेगा?”
एक पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी पत्रकार महोदय हमसे कहने लगे कि “शास्त्री जी, भाजपा ने मंदिर बनवाकर हमपर कौन सा अहसान कर दिया। मंदिर कौन सा हमें रोटी-रोज़ी दे रहा है। अगर राम मंदिर की जगह मस्ज़िद बन भी जाती तो कौन सा पहाड़ टूट जाता।”
एक महान बुद्धिजीवी तो यहां तक कह रहे थे कि- “मुगलों के राज में हिन्दू सबसे अधिक सुखी थे, और अंग्रेजों ने तो हिंदुओं को हमेशा सर-आंखों पर बैठाया। उनका कहना था कि मोदी-योगी ने देश को सांप्रदायिकता की आग में झोंक दिया है।”

एक किराने के व्यापारी कह रहे थे कि दिल्ली में केजरीवाल मुफ़्त बिजली-पानी दे रहा है। उत्तरप्रदेश में भी केजरीवाल ही आना चाहिए।

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सच पूछिए तो यह और इन जैसे तमाम लोगों की वजह से ही भारतवर्ष सदियों तक गुलाम रहा है। दरअसल ऐसे लोग व्यवस्था विरोधी होते हैं। इन्हें खाना-पीना और पिछवाड़े से हाथ पोंछना ही आता है। इससे ज़्यादा न इन्हें कुछ सूझता है और न ही ये कुछ सोचना चाहते हैं। यह वह लोग हैं जो जिम्मेदारी और जवाबदेही से हमेशा भागते रहे हैं, और आगे भी भागते रहेंगे। इनकी मानसिकता ही गुलामों वाली है।
जैसे कुत्ते को देसी घी हज़म नहीं होता, ठीक वैसे ही इन “हिंदुओं” को सत्ता हज़म नहीं होती है। इनके लिए धर्म, संस्कृति, सभ्यता, संस्कार और परम्पराओं का कोई मोल नहीं है ,इनके लिए चंद चांदी के सिक्कों की खनखनाहट ही काफी है। यह वही लोग हैं जिन्होंने अंग्रेज सरकारों की मुख़बरी की, और इन जैसे मुखबिरों की वजह से ही भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद, बिस्मिल और अशफ़ाक जैसे महान क्रांतिकारियों को समय से पहले शहीद होना पड़ा और उनका मिशन अधूरा रह गया। यही लोग हैं जिन्होंने सामूहिक धर्मांतरण किये और उसके बाद इन जैसों ने ही जिन्नागैंग का हौंसला बढ़ाया, भारत के टुकड़े हुए।

अगर हम इसे थोड़ा कड़े शब्दों में कहें तो ऐसे लोग वेश्या से भी गए-गुजरे होते हैं, वेश्या का भी एक ईमान होता है, धर्म होता है लेकिन इनका न ईमान होता है, न धर्म। इनका तो केवल धंधा होता है, सिर्फ धंधा।।

हालांकि यहां यह नहीं समझना चाहिये कि केवल भाजपा और योगी-मोदी ही हिंदुओं के रक्षक हैं, बल्कि यहां यह समझना जरूरी है कि आख़िर हम कब तक अपने धर्म का ह्रास होते देखते रहेंगे। अब तो हमें जाग जाना चाहिए। और हमारा नारा हो कि जो -हिन्दू, हिंदुत्व की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा।। अब चाहे वह मोदी हो, राहुल हों या फिर कोई और।।

मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
(नोएडा से प्रकाशित एक राष्ट्रवादी समाचार-पत्र)

*विशेष नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।

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